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Showing posts from July, 2024

एक रिश्ता ऐसा भी...

 इक बेनाम रिश्ता वो  करने लगा था बेचैन मुझे जो, बया न हो सके जो  था ऐसा एक इश्क वो। जाने कहा खो गया वो  जाने कहा गुम गया वो, अपना बनाया था मैंने जिसे  शायद इन फिजाओं में कहीं गुम गया वो । न तो मेरे दिन ढलते  और न ही  मेरी रातें , एक तेरे खयालों में नहीं है नींद इन आंखों में। अब तो बस बिना किसी मंजिल के खोजना है उन राहों को, खत्म ही न हो चलकर जिनपे  तेरे मेरे बीच का अनंत प्रेम वो।

अधूरा ख़्वाब ...

 ये बादल की पहली गड़गड़ाहट  और मुझपर इस सावन की पहली बूंद का गिरना... साथ ही चंचल हवा के झोके के साथ एक तेरे आने की खुशी ... लगने लगा जैसे आज वो दिन आ ही गया  जब तू और मैं फिर से एक हो जाएंगे  और एक साथ बारिश में इस पल को जीएंगे ... ये लम्हा तेरे आने का अंदेशा मुझे यूं ही कराता रहे  और मैं इस मौसम की पहली बारिश में, तेरे ख्यालों के साथ बस भीगता ही रहूं ... उन बूंदों को मैंने खुद से लगाकर बस तुझे महसूस ही किया था ... के फिर न जाने वो गड़गड़ाहट और हवा कहा चले गई? और हमारा मिलना फिर से  बस एक ख्वाब ही बनकर  रह गया ...

आत्ममंथन...

 यूं मेरा इस चाय के बागान में एकांत बैठना , और मेरे चंचल मन में तेरे उस एक खयाल का आना ... जैसे चाय में घुली हुई चीनी का केवल स्वाद आता है, ठीक उसी तरह तू और मैं भी अपनी ही बातों में बस घुले ही रहते है.. सच कहता हु... अगर उस एक पल में तू मेरे साथ होता, तो मेरे दिल को हरा उस बागान से ज्यादा तू कर देता... लेकिन जमाने का दस्तूर तो देखो, तू बस मेरे खयालों में ही आ सकता है ,एक मेरे साथ ही नही...

एकांतवास...

 अब तो इन वादियों में सिर्फ़ तेरा खयाल ही आता है, एक तू ही नहीं ... मेरा यू एकांतवास में होना, कहीं मुझे,मुझसे ही अलग न करदे ... मैं अक्सर इस सोच में रहता हू कि? जब तू साथ होता था तो ये दिन ढलते देर न लगती थी। अब तो ये वक्त भी मुझसे गुस्ताखी करने लगा है, न जाने मेरे इस अकेलेपन में क्यों थम सा जाता है? और बस तेरे ख्यालों में ही डूबे रहने का मन करता है...

वो लम्हे...

 न जाने ये पल मुझे ऐसा क्यों लगता है  लगता है उस एक पल में मैं, मैं नही... बस तेरा वो एक खयाल आना  और मेरे दिल का तेरे पास चले जाना... तू आया तो लगा, ज़िंदगी खूबसूरत सी होगी और... हुई भी  लगने लगा था जैसे मैं बस तुझमें ही खोया रहू  और तू सिर्फ मुझमें ... मेरा वो तुझसे बात करना और तेरा मुस्कराना  नहीं कर सकता उसे बया लफ्जों में... चाहते हम दोनो ही थे , कि वो वक्त थम जाए ,वो लम्हा थम जाए ... बस तू और मैं ऐसे ही एक दूसरे के आगोश में ही बैठे रहे...

वो चांदनी रात ...

  जाने क्यों मेरा चांद मुझसे रूठा हुआ है  कुछ कहना चाहूं तो बस इन बादलों के पीछे छुप जाता है। शायद मेरे चांद को भी मुझसे कोई दूर ले जाने की साजिश में है तभी तो अब मुझसे भी नज़रे फेरने लगा है। एक मेरे चांद ने तो मुझे जीने का सहारा दिया था  अब वही नहीं तो मेरी इन सांसों का क्या मोल ...  एक तुझसे ही तो मैंने इश्क करना सीखा था  अब तू ही नही तो ये इश्क भी मुझे गैर लगने लगा है... कभी कभी तो लगता है कि वो तू ही था  जिससे मैं अपनी हर बात करता था ... पर अब एक अल्फाज़ तक बोलने का मुझे हक़ नहीं है...