इक बेनाम रिश्ता वो करने लगा था बेचैन मुझे जो, बया न हो सके जो था ऐसा एक इश्क वो। जाने कहा खो गया वो जाने कहा गुम गया वो, अपना बनाया था मैंने जिसे शायद इन फिजाओं में कहीं गुम गया वो । न तो मेरे दिन ढलते और न ही मेरी रातें , एक तेरे खयालों में नहीं है नींद इन आंखों में। अब तो बस बिना किसी मंजिल के खोजना है उन राहों को, खत्म ही न हो चलकर जिनपे तेरे मेरे बीच का अनंत प्रेम वो।
जाने क्यों मेरा चांद मुझसे रूठा हुआ है
कुछ कहना चाहूं तो बस इन बादलों के पीछे छुप जाता है।
शायद मेरे चांद को भी मुझसे कोई दूर ले जाने की साजिश में है
तभी तो अब मुझसे भी नज़रे फेरने लगा है।
एक मेरे चांद ने तो मुझे जीने का सहारा दिया था
अब वही नहीं तो मेरी इन सांसों का क्या मोल ...
एक तुझसे ही तो मैंने इश्क करना सीखा था
अब तू ही नही तो ये इश्क भी मुझे गैर लगने लगा है...
कभी कभी तो लगता है कि वो तू ही था
जिससे मैं अपनी हर बात करता था ...
पर अब एक अल्फाज़ तक बोलने का मुझे हक़ नहीं है...
👍👍
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