ये बादल की पहली गड़गड़ाहट
और मुझपर इस सावन की पहली बूंद का गिरना...
साथ ही चंचल हवा के झोके के साथ एक तेरे आने की खुशी ...
लगने लगा जैसे आज वो दिन आ ही गया
जब तू और मैं फिर से एक हो जाएंगे
और एक साथ बारिश में इस पल को जीएंगे ...
ये लम्हा तेरे आने का अंदेशा मुझे यूं ही कराता रहे
और मैं इस मौसम की पहली बारिश में,
तेरे ख्यालों के साथ बस भीगता ही रहूं ...
उन बूंदों को मैंने खुद से लगाकर बस तुझे महसूस ही किया था ...
के फिर न जाने वो गड़गड़ाहट और हवा कहा चले गई?
और हमारा मिलना फिर से बस एक ख्वाब ही बनकर रह गया ...
बहुत सुन्दर भूपेन्द्र भाई। बरसात के मौसम में कविता और अच्छी लग रही है
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