इक बेनाम रिश्ता वो करने लगा था बेचैन मुझे जो, बया न हो सके जो था ऐसा एक इश्क वो। जाने कहा खो गया वो जाने कहा गुम गया वो, अपना बनाया था मैंने जिसे शायद इन फिजाओं में कहीं गुम गया वो । न तो मेरे दिन ढलते और न ही मेरी रातें , एक तेरे खयालों में नहीं है नींद इन आंखों में। अब तो बस बिना किसी मंजिल के खोजना है उन राहों को, खत्म ही न हो चलकर जिनपे तेरे मेरे बीच का अनंत प्रेम वो।
न जाने ये पल मुझे ऐसा क्यों लगता है
लगता है उस एक पल में मैं, मैं नही...
बस तेरा वो एक खयाल आना
और मेरे दिल का तेरे पास चले जाना...
तू आया तो लगा, ज़िंदगी खूबसूरत सी होगी
और... हुई भी
लगने लगा था जैसे मैं बस तुझमें ही खोया रहू
और तू सिर्फ मुझमें ...
मेरा वो तुझसे बात करना और तेरा मुस्कराना
नहीं कर सकता उसे बया लफ्जों में...
चाहते हम दोनो ही थे ,
कि वो वक्त थम जाए ,वो लम्हा थम जाए ...
बस तू और मैं ऐसे ही एक दूसरे के आगोश में ही बैठे रहे...
👍👍
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