इक बेनाम रिश्ता वो करने लगा था बेचैन मुझे जो, बया न हो सके जो था ऐसा एक इश्क वो। जाने कहा खो गया वो जाने कहा गुम गया वो, अपना बनाया था मैंने जिसे शायद इन फिजाओं में कहीं गुम गया वो । न तो मेरे दिन ढलते और न ही मेरी रातें , एक तेरे खयालों में नहीं है नींद इन आंखों में। अब तो बस बिना किसी मंजिल के खोजना है उन राहों को, खत्म ही न हो चलकर जिनपे तेरे मेरे बीच का अनंत प्रेम वो।
अब तो इन वादियों में सिर्फ़ तेरा खयाल ही आता है,
एक तू ही नहीं ...
मेरा यू एकांतवास में होना,
कहीं मुझे,मुझसे ही अलग न करदे ...
मैं अक्सर इस सोच में रहता हू कि?
जब तू साथ होता था तो ये दिन ढलते देर न लगती थी।
अब तो ये वक्त भी मुझसे गुस्ताखी करने लगा है,
न जाने मेरे इस अकेलेपन में क्यों थम सा जाता है?
और बस तेरे ख्यालों में ही डूबे रहने का मन करता है...
👍👍
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