इक बेनाम रिश्ता वो करने लगा था बेचैन मुझे जो, बया न हो सके जो था ऐसा एक इश्क वो। जाने कहा खो गया वो जाने कहा गुम गया वो, अपना बनाया था मैंने जिसे शायद इन फिजाओं में कहीं गुम गया वो । न तो मेरे दिन ढलते और न ही मेरी रातें , एक तेरे खयालों में नहीं है नींद इन आंखों में। अब तो बस बिना किसी मंजिल के खोजना है उन राहों को, खत्म ही न हो चलकर जिनपे तेरे मेरे बीच का अनंत प्रेम वो।
यूं मेरा इस चाय के बागान में एकांत बैठना ,
और मेरे चंचल मन में तेरे उस एक खयाल का आना ...
जैसे चाय में घुली हुई चीनी का केवल स्वाद आता है,
ठीक उसी तरह तू और मैं भी अपनी ही बातों में बस घुले ही रहते है..
सच कहता हु...
अगर उस एक पल में तू मेरे साथ होता,
तो मेरे दिल को हरा उस बागान से ज्यादा तू कर देता...
लेकिन जमाने का दस्तूर तो देखो,
तू बस मेरे खयालों में ही आ सकता है ,एक मेरे साथ ही नही...
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