इक बेनाम रिश्ता वो करने लगा था बेचैन मुझे जो, बया न हो सके जो था ऐसा एक इश्क वो। जाने कहा खो गया वो जाने कहा गुम गया वो, अपना बनाया था मैंने जिसे शायद इन फिजाओं में कहीं गुम गया वो । न तो मेरे दिन ढलते और न ही मेरी रातें , एक तेरे खयालों में नहीं है नींद इन आंखों में। अब तो बस बिना किसी मंजिल के खोजना है उन राहों को, खत्म ही न हो चलकर जिनपे तेरे मेरे बीच का अनंत प्रेम वो।
इक बेनाम रिश्ता वो
करने लगा था बेचैन मुझे जो,
बया न हो सके जो
था ऐसा एक इश्क वो।
जाने कहा खो गया वो
जाने कहा गुम गया वो,
अपना बनाया था मैंने जिसे
शायद इन फिजाओं में कहीं गुम गया वो ।
न तो मेरे दिन ढलते
और न ही मेरी रातें ,
एक तेरे खयालों में
नहीं है नींद इन आंखों में।
अब तो बस बिना किसी मंजिल के
खोजना है उन राहों को,
खत्म ही न हो चलकर जिनपे
तेरे मेरे बीच का अनंत प्रेम वो।
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