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एक रिश्ता ऐसा भी...

 इक बेनाम रिश्ता वो  करने लगा था बेचैन मुझे जो, बया न हो सके जो  था ऐसा एक इश्क वो। जाने कहा खो गया वो  जाने कहा गुम गया वो, अपना बनाया था मैंने जिसे  शायद इन फिजाओं में कहीं गुम गया वो । न तो मेरे दिन ढलते  और न ही  मेरी रातें , एक तेरे खयालों में नहीं है नींद इन आंखों में। अब तो बस बिना किसी मंजिल के खोजना है उन राहों को, खत्म ही न हो चलकर जिनपे  तेरे मेरे बीच का अनंत प्रेम वो।

एक रिश्ता ऐसा भी...

 इक बेनाम रिश्ता वो 

करने लगा था बेचैन मुझे जो,

बया न हो सके जो 

था ऐसा एक इश्क वो।


जाने कहा खो गया वो 

जाने कहा गुम गया वो,

अपना बनाया था मैंने जिसे 

शायद इन फिजाओं में कहीं गुम गया वो ।


न तो मेरे दिन ढलते 

और न ही  मेरी रातें ,

एक तेरे खयालों में

नहीं है नींद इन आंखों में।


अब तो बस बिना किसी मंजिल के

खोजना है उन राहों को,

खत्म ही न हो चलकर जिनपे 

तेरे मेरे बीच का अनंत प्रेम वो।


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